लेखनी कहानी -जेल में चुड़ैल का आतंक
जेल में चुड़ैल का आतंक
मेरा नाम किशनलाल मौरी है। मै पेशे से एक लौहार हूँ। मीरा नगर में गांधी चौक में मेरी छोटी सी दुकान है। मेरे घर में मेरी बीवी हेमा और मेरा बेटा योगेश है। वैसे तो दुकान का काम काज ठीक-ठाक चल रहा था, पर मेरे काम में तेजी-मंदी भी चलती रहती थी। घर के खर्चे बड़ी मुश्किल से निकल रहे थे।
एक दिन एक ग्राहक आया और उसने मेरी दुकान पर आ कर एक लोहे की जाली बनवानें का ऑर्डर दिया। मुझे पक्का याद है की उसने एडवांस में 500 रुपेय दिये थे। पर जब वह तैयार हो चुकी जाली लेने आया तो, यह ज़िद करने लगा की उसने 1000 एडवांस दिया था।
इसी बात पर मेरी और उसकी हाता-पाई हो गयी। और मैने गुस्से में उसके सिर पर लोहे का पाइप मार दिया। इस कांड की वजह से मुझे 1 साल की जेल हो गयी। वैसे तो में आज जेल से रिहा हो चुका हूँ पर,,, पर जेल की कड़वी यादें आज भी मुझे बहुत डराती है।
जेल के अंदर मुझे “सी” बैरेक में रखा था। मेरा कैदी नंबर 13 था। एक रात जब मै सोया हुआ था तो मैंने किसी औरत के हसने की आवाज़ सुनी। मै चौक गया। जब मैंने लॉबी में देखा तो दूर अंधेरे में कोई औरत खड़ी थी। मुझे यकीन नहीं हुआ की मर्दों की जेल में एक औरत कैसे घुस आई होगी। मैने अपने पास सोये हुए सोमेश को जगाया और बोला की यहाँ पर कोई औरत घूम रही है। सोमेश बोला की तेरा दिमाग हट गया है क्या? ये मर्दों की जेल है, यहाँ कोई औरत अंदर नहीं आ सकती। इतना बोल कर वह फिर से सो गया।
मैंने फिर से सलियों के बाहर जांका तो पता चला की वह औरत अब भी वहीं लॉबी में खड़ी थी। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उसकी और पानी का खाली गिलास फैंका। मेरी इस हरकत से उसनें मेरी और देखा और अंधेरे से उझाले में आने लगी। वह एक सजी-धजी जवान औरत थी। वह हमारे सेल के पास आ कर रुक गयी। मै डर के मारे थोड़ा पीछे हट गया।
तभी अचानक उसने हमारे सेल के ताले पर नज़र डाली। पलक जपकते ही ताला खुल कर नीचे गिर गया। और दरवाज़ा भी खुल गया। यह सब देख कर मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए। उसके बाद उसने मेरी और नज़र घुमाई। मै उसे देख कर डर के मारे काँपनें लगा। अब वह फिर से मूड कर उस और जाने लगी जहां से वह आई थी। जब वह मुड़ी तो उसके पीठ पर कोई मांस या चमड़ी नहीं थी। सिर्फ पिंजर था। यह भयानक नज़ारा देख कर मेरे तो हौश उड़ गए। मै चिल्लाना चाहता था पर ज़बान से आवाज़ भी नहीं निकल पा रही थी।
कुछ ही देर में वह भयानक औरत गायब हो गयी। मैंने फिर से सोमेश को जगाया। इस बार मेरा डरा हुआ चहेरा देख कर सोमेश भी चौक गया। उसने सेल का दरवाज़ा खुला देखा तो वह बोला की यह तूने क्या किया? हम पर जेल से भागने का आरोप लगेगा। हम दोनों नें मिल कर सेल का दरवाज़ा बंद कर लिया और खुला ताला लटका दिया।
सुबह जब हमें गार्ड बाहर निकालने आया तो उसने हमारे सेल का ताला खुला पाया। उसने फौरन जैलर साहब को बुलाया। हमे तो लगा की गए काम से,,, एक और मुकदमा जेलना पड़ेगा।
जैलर के आते ही हमनें उसके पैर पकड़ लिए। और हम गिड़-गिड़ानें लगे की हमने कुछ भी नहीं किया है। कुछ देर बाद जैलर बोला की शांत हो जाओ,,, मुझे पता है की ताला तुम दोनों नें नहीं तोड़ा है। मुझे पता है की हमारे जेल में एक खतरनाक चुड़ैल घूमती है।
कई कैदी उसके खौफ से बीमार भी पड़ जाते हैं। अगर उस चुड़ैल को गुस्सा ना दिलाया जाए तो वह इधर-उधर घूम कर वापिस चली जाती है। तुम दोनों नें कुछ किया तो नहीं था ना?
मैने फौरन कबुल किया की,,, वह कौन है यह जानने के लिए मैने उसकी और एक खाली गिलास फैंका था। फिर वह मेरे सेल की और आई थी और उसी नें पता नहीं क्या कर के ताला खोल डाला था।
जैलर नें कहा की यह अच्छा नहीं हुआ। अब तुम्हें सावधान रहना होगा। वह किसी भी वक्त तुम पर हमला कर सकती है। उसी दिन जैलर नें मुझे “सी” बैरेक से निकाल कर “बी” बैरेक में शिफ्ट कर दिया। उस दिन के बाद हर रात मुझे पायल की खनक सुनाये देती थी। कभी कभी वह भयानक चुड़ैल मुझे सेल के अंदर भी दिखाये देती थी।
नींद में भी मुझे उसी के सपने आने लगे। कभी कभी तो ऐसा लगता की वह मेरी छाती पर आ बैठी है। ऐसे ही दिन पर दिन मेरा डर बढ्ने लगा। और मै बे वजह बीमार रहने लगा। अभी मेरी एक साल की सज़ा खत्म होने में 3 महीने बाकी थे,,, तभी मेरी हालत को ध्यान में रखते हुए मुझे बाकी की सज़ा से मुक्ति दे दी गयी। और में घर लौट आया।
घर आ कर मुझे लगा की बला टल गयी,,, पर ऐसा नहीं था। अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने उस खौफनाक चुड़ैल को मेरी बीवी हेमा के पीछे खड़े हुए देखा था। मुझे नहीं पता की वह चुड़ैल मेरा पीछा कब छोड़ेगी, या फिर मेरी जान ले कर ही दम लेगी। मै तो अब बस भगवान के सहारे ही जी रहा हूँ |